फिर कुछ इस दिल को बे-क़रारी है – मिर्ज़ा ग़ालिब

Presenting the ghazal “Phir Kuch Is Dil Ko”, written by the Urdu Poet Mirza Ghalib. This ghazal has been sung by the Ghazal maestro Jagjit Singh and the music is also composed by him. Mirza Ghalib’s magnificent words and Jagjit Singh’s soulful music have endured over the years in the form of some memorable ghazals. Enjoy this gem!

Best of Mirza Ghalib Volume 2 Jagjit Singh

फिर कुछ इस दिल को बे-क़रारी है

फिर कुछ इस दिल को बे-क़रारी है
सीना जुया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है

फिर जिगर खोदने लगा नाख़ुन
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लाला-कारी है

क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़
फिर वही पर्दा-ए-अमारी है

चश्म दल्लाल-ए-जिंस-ए-रुस्वाई
दिल ख़रीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख़्वारी है

वही सद-रंग नाला-फ़रसाई
वही सद-गोना अश्क-बारी है

दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से फिर
महशरिस्तान-ए-सितान-ए-बेक़रारी है

जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है
रोज़ बाज़ार-ए-जाँ-सिपारी है

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वही ज़िंदगी हमारी है

फिर खुला है दर-ए-अदालत-ए-नाज़
गर्म-बाज़ार-ए-फ़ौजदारी है

हो रहा है जहान में अंधेर
ज़ुल्फ़ की फिर सिरिश्ता-दारी है

फिर दिया पारा-ए-जिगर ने सवाल
एक फ़रियाद ओ आह-ओ-ज़ारी है

फिर हुए हैं गवाह-ए-इश्क़ तलब
अश्क-बारी का हुक्म-जारी है

दिल ओ मिज़्गाँ का जो मुक़द्दमा था
आज फिर उस की रू-बकारी है

बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है

Ghazal Details

Singer – Jagjit Singh
Music – Jagjit Singh
Lyrics – Mirza Ghalib
Record – Saregama

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