लब-ए-ख़ामोश से अफ्शा होगा – अहमद नदीम क़ासमी

अहमद नदीम क़ासमी एक तरक़्क़ी-पसंद शायर के रूप में जाने जाते हैं. महफ़िल पर पढ़िए उनकी एक बेहतरीन ग़ज़ल जिसका शीर्षक है “लब-ए-ख़ामोश से अफ्शा होगा

Ahmad Nadeem Qasmi

लब-ए-ख़ामोश से अफ्शा होगा
राज़ हर रंग में रुस्वा होगा

दिल के सहरा में चली सर्द हवा
अबर् गुलज़ार पर बरसा होगा

तुम नहीं थे तो सर-ए-बाम-ए-ख़याल
याद का कोई सितारा होगा

किस तवक्क़ो पे किसी को देखें
कोई तुम से भी हसीं क्या होगा

ज़ीनत-ए-हल्क़ा-ए-आग़ोश बनो
दूर बैठोगे तो चर्चा होगा

ज़ुल्मत-ए-शब में भी शर्माते हो
दर्द चमकेगा तो फिर क्या होगा

जिस भी फ़नकार का शाहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा

किस क़दर कबर् से चटकी है कली
शाख़ से गुल कोई टूटा होगा

उमर् भर रोए फ़क़त इस धुन में
रात भीगी तो उजाला होगा

सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम-स भी न तन्हा होगा