कोई दिन गर ज़िंदगानी और है – मिर्ज़ा ग़ालिब

Presenting the ghazal “Koi Din Gar Zindagani Aur Hai”, written by the Urdu Poet Mirza Ghalib.

Mirza Ghalib Shayari - Urdu Shayari Ghazal and Sher of Ghalib

ई दिन गर ज़िंदगानी और है

कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
अपने जी में हम ने ठानी और है

आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ
सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी और है

बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें
पर कुछ अब के सरगिरानी और है

दे के ख़त मुँह देखता है नामा-बर
कुछ तो पैग़ाम-ए-ज़बानी और है

क़ाता-ए-एमार है अक्सर नुजूम
वो बला-ए-आसमानी और है

हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलाएँ सब तमाम
एक मर्ग-ए-ना-गहानी और है