ख़ामोशी का समाँ है और मैं हूँ – जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी उर्दू साहित्य में उर्दू पर अधिपत्य और उर्दू व्याकरण के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जाने जाते है. उनकी एक ग़ज़ल पढ़िए – “ख़ामोशी का समाँ है और मैं हूँ “.

Josh Malihabadi

ख़ामोशी का समाँ है और मैं हूँ
दयार-ए-ख़ुफ़्तगाँ है और मैं हूँ

कभी ख़ुद को भी इंसाँ काश समझे
ये सई-ए-रायगाँ है और मैं हूँ

कहूँ किस से कि इस जमहूरियत में
हुजूम-ए-ख़सरवाँ है और मैं हूँ

पड़ा हूँ इस तरफ़ धूनी रमाये
अताब-ए-रहरवाँ है और मैं हूँ

कहाँ है हम-ज़बाँ अल्लाह जाने
फ़क़त मेरी ज़बाँ है और मैं हूँ

ख़ामोशी है ज़मीं से आस्माँ तक
किसी की दास्ताँ है और मैं हूँ

क़यामत है ख़ुद अपने आशियाँ में
तलाश-ए-आशियाँ है और मैं हूँ

जहाँ एक जुर्म है याद-ए-बहाराँ
वो लाफ़ानी-ख़िज़ाँ है और मैं हूँ

तरसती हैं ख़रीददारों की आँखें
जवाहिर की दुकाँ है और मैं हूँ

नहीं आती अब आवाज़-ए-जरस भी
ग़ुबार-ए-कारवाँ है और मैं हूँ

म’अल-ए-बंदगी ऐ “जोश” तौबा
ख़ुदा-ए-मेहरबाँ है और मैं हूँ