कौन इस राह से गुज़रता है – नासिर काज़मी

नासिर काज़मी के ग़ज़लों में देश बटवारे का दुःख झलकता है, साथ ही उनके कलाम में उनका युग बोलता हुआ दिखाई देता है. आज पढ़िए उनकी एक ग़ज़ल “कौन इस राह से गुज़रता है”.

Nasir Kazmi

कौन इस राह से गुज़रता है
दिल यूँ ही इंतज़ार करता है

देख कर भी न देखने वाले
दिल तुझे देख-देख डरता है

शहर-ए-गुल में कटी है सारी रात
देखिये दिन कहाँ गुज़रता है

ध्यान की सीढ़ियों पे पिछले पहर
कोई चुपके से पाँव धरता है

दिल तो मेरा उदास है “नासिर”
शहर क्यों सायँ-सायँ करता है