इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में – जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी उर्दू साहित्य में उर्दू पर अधिपत्य और उर्दू व्याकरण के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जाने जाते है. उनकी एक ग़ज़ल पढ़िए – “इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में”.

Josh Malihabadi

इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में
इबादत तो नहीं है इक तरह की वो तिजारत है

जो डर के नार-ए-दोज़ख़ से ख़ुदा का नाम लेते हैं
इबादत क्या वो ख़ाली बुज़दिलाना एक ख़िदमत है

मगर जब शुक्र-ए-ने’मत में जबीं झुकती है बन्दे की
वो सच्ची बन्दगी है इक शरीफ़ाना इत’अत है

कुचल दे हसरतों को बेनियाज़-ए-मुद्दा हो जा
ख़ुदी को झाड़ दे दामन से मर्द-ए-बाख़ुदा हो जा

उठा लेती हैं लहरें तहनशीं होता है जब कोई
उभरना है तो ग़र्क़-ए-बह्र-ए-फ़ना हो जा