फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे. वे उर्दू शायरी के सबसे बड़े नाम में गिने जाते हैं. उनकी एक ग़ज़ल सुनिए – “हमीं से अपनी नवा हमकलाम होती रही”.
हमीं से अपनी नवा हमकलाम होती रही
ये तेग अपने लहू में नियाम होती रही
मुक़ाबिल-ए-सफ़-ए-आदा जिसे किया आगाज़
वो: जंग अपने ही हिल में तमाम होती रही
कोई मसीहा न ईफ़ा-ए-अहद को पहुँचा
बहुत तलाश पस-ए-क़त्ल-ए-आम होती रही
ये बरहमन का करम, वो अता-ए-शेख-ए-हरम
कभी हयात कभी मय हराम होती रही
जो कुछ भी बन न पड़ा ‘फैज़’ लूट के यारों से
तो रहज़नों से दुआ-ओ-सलाम होती रही.