जिगर मुरादाबादी 20 वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवि और उर्दू गजल के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक हैं. उनकी एक ग़ज़ल पढ़िए – “फ़ुर्सत कहाँ कि छेड़ करें आसमाँ से हम” .
फ़ुर्सत कहाँ कि छेड़ करें आसमाँ से हम
लिपटे पड़े हैं लज़्ज़ते-दर्दे-निहाँ से हम
इस दर्ज़ा बेक़रार थे दर्दे-निहाँ से हम
कुछ दूर आगे बढ़ गए उम्रे-रवाँ से हम
ऐ चारासाज़ हालते दर्दे-निहाँ न पूछ
इक राज़ है जो कह नहीं सकते ज़बाँ से हम
बैठे ही बैठे आ गया क्या जाने क्या ख़याल
पहरों लिपट के रोए दिले-नातवाँ से हम