इक शख़्स था ज़माना था के दीवाना बना – मख़दूम मुहिउद्दीन

मख़दूम मुहिउद्दीन जिन्हें शायर-ए-इन्क़िलाब (क्रांति का कवि) भी कहा जाता है, प्रस्तुत है उन्हीं की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल “इक शख़्स था ज़माना था के दीवाना बना”

Makhdoom Mohiuddin

इक शख़्स था ज़माना था के दीवाना बना
इक अफ़साना था अफ़साने से अफ़साना बना

इक परी चेहरा के जिस चेहरे से आइना बना
दिल के आइना दर आइना परीख़ाना बना

कीमि-ए-शब् में निकल आता है गाहे गाहे
एक आहू कभी अपना कभी बेगाना बना

है चरागाँ ही चरागाँ सरे अरिज सरेजाम
रंग सद जलवा जाना न सनमख़ाना बना

एक झोंका तेरे पहलू का महकती हुई याद
एक लम्हा तेरी दिलदारी का क्या-क्या न बना