दुश्मन-दोस्त सभी कहते हैं, बदला नहीं हूँ मैं – शहरयार

शहरयार एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे. प्रस्तुत है उनकी एक ग़ज़ल “दुश्मन-दोस्त सभी कहते हैं, बदला नहीं हूँ मैं”

Shaharyaar

दुश्मन-दोस्त सभी कहते हैं, बदला नहीं हूँ मैं।
तुझसे बिछड़ के क्यों लगता है, तनहा नहीं हूँ मैं।

उम्र-सफश्र में कब सोचा था, मोड़ ये आयेगा।
दरिया पार खड़ा हूँ गरचे प्यासा नहीं हूँ मैं।

पहले बहुत नादिम था लेकिन आज बहुत खुश हूँ।
दुनिया-राय थी अब तक जैसी वैसा नहीं हूँ मैं।

तेरा लासानी होना तस्लीम किया जाए।
जिसको देखो ये कहता है तुझ-सा नहीं हूँ मैं।

ख्वाबतही कुछ लोग यहाँ पहले भी आये थे।
नींद-सराय तेरा मुसाफिश्र पहला नहीं हूँ मैं।