दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या – मिर्ज़ा ग़ालिब

Presenting the ghazal “Dost Gam Khwari Mein Meri”, written by the Urdu Poet Mirza Ghalib. This Ghazal has been sung by ghazal maestro Jagjit Singh, and music is also composed by him.

Best of Mirza Ghalib Volume 1 Jagjit Singh

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
ज़ख़्म के भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगे क्या

बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक
हम कहेंगे हाल-ए-दिल और आप फ़रमावेंगे क्या

हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझावेंगे क्या

आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या

गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा यूँ सही
ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जावेंगे क्या

ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं ज़ंजीर से भागेंगे क्यूँ
हैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा ज़िंदाँ से घबरावेंगे क्या

है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ‘असद’
हम ने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या

Ghazal Details: 

Singer – Jagjit Singh
Music – Jagjit Singh
Ghazal – Mirza Ghalib
Record – Saregama Ghazal

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