ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी “मीर” जो उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे, उनकी ग़ज़ल “बेखुदी ले गयी कहाँ हम को” पढ़िए.
बेखुदी ले गयी कहाँ हम को
देर से इंतज़ार है अपना
रोते फिरते हैं सारी-सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना
दे के दिल हम जो हो गए मजबूर
इस में क्या इख्तियार है अपना
कुछ नही हम मिसाले-अनका लेक
शहर-शहर इश्तेहार है अपना
जिस को तुम आसमान कहते हो
सो दिलों का गुबार है अपना