क़तील शिफ़ाई एक पाकिस्तानी उर्दू भाषा के कवि थे. वे एक प्रगतिशील और मानवतावादी विचारधारा के पक्षघर शायर थे. आज उनकी एक ग़ज़ल “अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की” पढ़िए.
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की
कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की
वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उनको जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की
उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की