ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं – फ़ानी बदायुनी

फ़ानी बदायुनी को निराशावाद का पेशवा कहा जाता है. उनकी शायरी दुख व पीड़ा की शायरी है. प्रस्तुत है उनकी एक वैसी ही शायरी “ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं “.

फ़ानी बदायूनी Fani Badayuni

ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं

बे-अदब गिर्या-ए-महरूमी-ए-दीदार नहीं
वर्ना कुछ दर के सिवा हासिल-ए-दीवार नहीं

आसमाँ भी तिरे कूचे की ज़मीं है लेकिन
वो ज़मीं जिस पे तिरा साया-ए-दीवार नहीं

हाए दुनिया वो तिरी सुरमा-तक़ाज़ा आँखें
क्या मिरी ख़ाक का ज़र्रा कोई बेकार नहीं