अहमद फ़राज़ आधुनिक उर्दू के सर्वश्रेष्ठ शायरों में से हैं. उनकी शायरी दर्द और मोहब्बत की शायरी है. पेश है फ़राज़ की एक बेहतरीन ग़ज़ल “ये आलम शौक़ का देखा न जाये“.
ये आलम शौक़ का देखा न जाये
वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाये
ये किन नज़रों से तुम ने आज देखा
के तेरा देखना देखा न जाये
हमेशा के लिये मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र बारहा देखा न जाये
ग़लत है जो सुना पर आज़मा कर
तुझे ऐ बेवफ़ा देखा न जाये
ये महरूमी नहीं पास-ए-वफ़ा है
कोई तेरे सिवा देखा न जाये
यही तो आश्ना बनते हैं आख़िर
कोई नाआश्ना देखा न जाये
“फ़राज़” अपने सिवा है कौन तेरा
तुझे तुझ से जुदा देखा न जाये