नागार्जुन हिन्दी, संस्कृत और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे. उनकी लिखी एक हिंदी कविता पढ़ें, शीर्षक है – “संग तुम्हारे, साथ तुम्हारे”.
एक-एक को गोली मारो
जी हाँ, जी हाँ, जी हाँ, जी हाँ …
हाँ-हाँ, भाई, मुझको भी तुम गोली मारो
बारूदी छर्रे से मेरी सद्गति हो …
मैं भी यहाँ शहीद बनूँगा
अस्पताल की खटिया पर क्यों प्राण तजूँगा
हाँ, हाँ, भाई, मुझको भी तुम गोली मारो
पतित बुद्धिजीवी जमात में आग लगा दो
यों तो इनकी लाशों को क्या गीध छुएँगे
गलित कुष्ठवाली काया को
कुत्ते भी तो सूँघ-सूँघकर दूर हटेंगे
अपनी मौत इन्हें मरने दो …
तुम मत जाया करना
अपना वो बारूदी छर्रा इनकी ख़ातिर
वर्ग शत्रु तो ढेर पड़े हैं,
इनकी ही लाशों से अब तुम
भूमि पाटते चलना
हम तो, भैया, लगे किनारे …
नहीं, नहीं, ये प्राण हमारे
देंगे, देंगे, देंगे, देंगे, देंगे
संग तुम्हारे, साथ तुम्हारे
मैं न अभी मरने वाला हूँ …
मर-मर कर जीने वाला हूँ …