त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य प्रगतिशील काव्यधारा का एक स्तम्भ माना जाता है. पढ़िए उनकी लिखी एक कविता – परिचय की गाँठ
यूं ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गांठ लगा दी!
था पथ पर मैं भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर ती उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
कभी कभी यूं हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूंज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
जड़ता है जीवन की पीड़ा
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा
छवि के शर से दूर भगा दी।