दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक – कुंवर बेचैन

हिंदी ग़ज़ल और गीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुंवर बेचैन की एक बेहद खूबसूरत कविता पढ़िए – “दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक”.

Kunwar Bechain

दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक
चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक

हो सके तो चल किसी की आरजू के साथ-साथ
मुस्कराती ज़िंदगी पर मौत का मंतर न फेंक

जो धरा से कर रही है कम गगन का फासला
उन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फेंक

फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछाल
तैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक

यह तेरी काँवर नहीं कर्तव्य का अहसास है
अपने कंधे से श्रवण! संबंध का काँवर न फेंक