Since her death, the “Parveen Shakir Urdu Literature Festival” has been held every year in Islamabad in her memoriam.
परवीन शाकिर एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। वे उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी शायरी का केन्द्रबिंदु स्त्री रहा है। फ़हमीदा रियाज़ के अनुसार ये पाकिस्तान की उन कवयित्रियों में से एक हैं जिनके शेरों में लोकगीत की सादगी और लय भी है और क्लासिकी संगीत की नफ़ासत भी और नज़ाकत भी। उनकी नज़्में और ग़ज़लें भोलेपन और सॉफ़िस्टीकेशन का दिलआवेज़ संगम है।
Parveen Shakir Shayari and Poems
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Some Latest Added Poems of Parveen Shakir
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- कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी – परवीन शाकिर
- कच्चा-सा इक मकाँ – परवीन शाकिर
- चेहरा मेरा था निगाहें उस की – परवीन शाकिर
- कायनात के ख़ालिक़ – परवीन शाकिर
- हमने ही लौटने का इरादा नहीं किया – परवीन शाकिर
- खुलेगी इस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता – परवीन शाकिर
- वह बाग़ में मेरा मुंतज़िर था – परवीन शाकिर
- तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ-साथ – परवीन शाकिर
- उसी तरह से हर इक ज़ख़्म खुशनुमा देखे – परवीन शाकिर
- शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले – परवीन शाकिर
Parveen Shakir Chuninda Sher Shayari
- अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं
रोज़ इक मौत नए तर्ज़ की ईजाद करे अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई कीकाँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोईमैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो
मुझे मेरी रज़ा से माँगता हैकुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए
और कुछ मिरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थीलड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब
हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ साथदेने वाले की मशिय्यत पे है सब कुछ मौक़ूफ़
माँगने वाले की हाजत नहीं देखी जातीवो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगाकमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगीयही वो दिन थे जब इक दूसरे को पाया था
हमारी साल-गिरह ठीक अब के माह में हैयूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखनाबहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन
वो जानता था कि है एहतिमाम किस के लिएमैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई
वो शख़्स आ के मिरे शहर से चला भी गयाबस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिएइतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद