Jigar Moradabadi

Jigar Moradabadi Ali Sikandar (6 April 1890 – 9 September 1960), known by his nom de plume as Jigar Moradabadi, was an Indian Urdu poet and ghazal writer. He received the Sahitya Akademi Award Award in 1958 for his poetry collection “Atish-e-Gul”, and was the second poet (after Mohammad Iqbal) to be awarded an honorary D.Litt. by the Aligarh Muslim University.

जिगर मुरादाबादी 20 वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवि और उर्दू गजल के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक। उनकी अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह “आतिश-ए-गुल” के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।

‘जिगर’ पहले मिर्ज़ा ‘दाग’ के शिष्य थे। बाद में ‘तसलीम’ के शिष्य हुए। ‘जिगर’ साहब का शेर पढ़ने का ढंग कुछ ऐसा था कि उस समय के युवा शायर उनके जैसे शेर कहने और उन्हीं के अंदाज़ को अपनाने की कोशिश किया करते थे। इतना ही नहीं उनके जैसा होने के लिए नए शायरों की पौध उनकी ही तरह रंग-रूप करने का जतन करती थी।

(Source: As read on Wikipedia)

Jigar Moradabadi Shayari and Poem

Some Latest Added Poems of Jigar Moradabadi

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Jigar Moradabadi Chuninda Sher – Shayari 

  • दिल को सुकून रूह को आराम गया
    मौत गई कि दोस्त का पैग़ाम गया
  • दोनों हाथों से लूटती है हमें
    कितनी ज़ालिम है तेरी अंगड़ाई

  • हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
    हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं

  • ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
    इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

  • अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
    हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया

  • इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
    क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम

  • हम ने सीने से लगाया दिल अपना बन सका
    मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया

  • यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर
    जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं

  • हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
    हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं

  • कि तुझ बिन इस तरह दोस्त घबराता हूँ मैं
    जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं