जिगर मुरादाबादी 20 वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवि और उर्दू गजल के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक। उनकी अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह “आतिश-ए-गुल” के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।
‘जिगर’ पहले मिर्ज़ा ‘दाग’ के शिष्य थे। बाद में ‘तसलीम’ के शिष्य हुए। ‘जिगर’ साहब का शेर पढ़ने का ढंग कुछ ऐसा था कि उस समय के युवा शायर उनके जैसे शेर कहने और उन्हीं के अंदाज़ को अपनाने की कोशिश किया करते थे। इतना ही नहीं उनके जैसा होने के लिए नए शायरों की पौध उनकी ही तरह रंग-रूप करने का जतन करती थी।
(Source: As read on Wikipedia)
Jigar Moradabadi Shayari and Poem
Some Latest Added Poems of Jigar Moradabadi
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- ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके – जिगर मुरादाबादी
- हर इक सूरत हर इक तस्वीर मुबहम होती जाती है – जिगर मुरादाबादी
- फ़ुर्सत कहाँ कि छेड़ करें आसमाँ से हम – जिगर मुरादाबादी
- यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है – जिगर मुरादाबादी
- मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम – जिगर मुरादाबादी
- दिल में तुम हो नज़अ का हंगाम है – जिगर मुरादाबादी
- कहाँ वो शोख़, मुलाक़ात ख़ुद से भी न हुई – जिगर मुरादाबादी
- तेरी खुशी से अगर गम में भी खुशी न हुई – जिगर मुरादाबादी
- दुनिया के सितम याद ना अपनी हि वफ़ा याद – जिगर मुरादाबादी
- निगाहों से छुप कर कहाँ जाइएगा – जिगर मुरादाबादी
Jigar Moradabadi Chuninda Sher – Shayari
- दिल को सुकून रूह को आराम आ गया
मौत आ गई कि दोस्त का पैग़ाम आ गया दोनों हाथों से लूटती है हमें
कितनी ज़ालिम है तेरी अंगड़ाईहम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहींये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना हैअपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गयाइतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हमहम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गयायूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैंहम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहींआ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं