किस शह्‍र न शोहरा हुआ नादानी-ए-दिल का – फैज़ अहमद फैज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे. वे उर्दू शायरी के सबसे बड़े नाम में गिने जाते हैं. उनकी एक ग़ज़ल सुनिए – किस शह्‍र न शोहरा हुआ नादानी-ए-दिल का

Faiz ahmad Faiz album Shaam e shehr e yaaran

किस शह्‍र न शोहरा हुआ नादानी-ए-दिल का — फैज़ अहमद फैज़ 

किस शह्‍र न शोहरा हुआ नादानी-ए-दिल का
किस पर न खुला राज़ परीशानी-ए-दिल का

आयो करें महफ़िल पे ज़रे-ज़ख़्म नुमायां
चर्चा है बहुत बे-सरो-सामानी-ए-दिल का

देख आयें चलो कूए-निगारां का ख़राबा
शायद कोई महरम मिले वीरानी-ए-दिल का

पूछो तो इधर तीरफ़िगन कौन है यारो
सौंपा था जिसे काम निगहबानी-ए-दिल का

देखो तो किधर आज रुख़े-बादे-सबा है
किस रह से पयाम आया है ज़िन्दानी-ए-दिल का

उतरे थे कभी ‘फ़ैज़’ वो आईना-ए-दिल में,
आलम है वही आज भी हैरानी-ए-दिल का

अर्थ 

शोहरा=मशहूरी
कूए-निगारां=प्रेमिका की गली
तीरफ़िगन=तीर चलाने वाला
ज़िन्दानी=कैदी

 

This ghazal is from the Faiz Ahmad Faiz album’s Shaam-e-Shehr-e-Yaaran. Faiz Ahmad Faiz has recited his ghazal in his own voice. Listen to the audio on these streaming platforms –