जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला – गोपालदास “नीरज

गोपालदास नीरज हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक एवं फ़िल्मों के गीत लेखक थे. प्रस्तुत है उनकी एक कविता जिसका शीर्षक है – जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला

Hindi Poet Gopal Das Neeraj

जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला

जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला,
मेरे स्वागत को हर एक जेब से खंजर निकला ।

तितलियों फूलों का लगता था जहाँ पर मेला,
प्यार का गाँव वो बारूद का दफ़्तर निकला ।

डूब कर जिसमे उबर पाया न मैं जीवन भर,
एक आँसू का वो कतरा तो समुंदर निकला ।

मेरे होठों पे दुआ उसकी जुबाँ पे ग़ाली,
जिसके अन्दर जो छुपा था वही बाहर निकला ।

ज़िंदगी भर मैं जिसे देख कर इतराता रहा,
मेरा सब रूप वो मिट्टी की धरोहर निकला ।

वो तेरे द्वार पे हर रोज़ ही आया लेकिन,
नींद टूटी तेरी जब हाथ से अवसर निकला ।

रूखी रोटी भी सदा बाँट के जिसने खाई,
वो भिखारी तो शहंशाहों से बढ़ कर निकला ।

क्या अजब है इंसान का दिल भी ‘नीरज’
मोम निकला ये कभी तो कभी पत्थर निकला ।