माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं. उनकी एक कविता प्रस्तुत है – दूबों के दरबार में
क्या आकाश उतर आया है
दूबों के दरबार में?
नीली भूमि हरी हो आई
इस किरणों के ज्वार में !
क्या देखें तरुओं को उनके
फूल लाल अंगारे हैं;
बन के विजन भिखारी ने
वसुधा में हाथ पसारे हैं।
नक्शा उतर गया है, बेलों
की अलमस्त जवानी का
युद्ध ठना, मोती की लड़ियों से
दूबों के पानी का!
तुम न नृत्य कर उठो मयूरी,
दूबों की हरियाली पर;
हंस तरस खाएँ उस मुक्ता
बोने वाले माली पर!
ऊँचाई यों फिसल पड़ी है
नीचाई के प्यार में!
क्या आकाश उतर आया है
दूबों के दरबार में?