नए साल की कवितायेँ – हरिवंशराय बच्चन

नये साल पर शायद सबसे ज्यादा कवितायें हरिवंशराय बच्चन जी ने लिखी हैं.. तो आइये आज पढ़ते हैं उनकी लिखी कुछ बेहतरीन कवितायें

 

नव वर्ष 

 

खिली सहास एक-एक पंखुरी,
झड़ी उदास एक-एक पंखुरी,
दिनांत प्रात, प्रात सांझ में घुला,
इसी तरह व्यतीत वर्ष हो गया।
गया हुआ समय फिरा नहीं कभी,
गिरा हुआ सुमन उठा नहीं कभी,
गई निशा दिवस कपाट को खुला,
गिरा सुमन नवीन बीज बो गया।
सजे नया कुसुम नवीन डाल में,
सजे नया दिवस नवीन साल में,
सजे सगर्व काल कंठ-भाल में
नवीन वर्ष को स्वरूप दो नया।
साथी, नया वर्ष आया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
वर्ष पुराना, ले, अब जाता,
कुछ प्रसन्न सा, कुछ पछताता
दे जी भर आशीष, बहुत ही इससे तूने दुख पाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
उठ इसका स्वागत करने को,
स्नेह बाहुओं में भरने को,
नए साल के लिए, देख, यह नई वेदनाएँ लाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
उठ, ओ पीड़ा के मतवाले!
ले ये तीक्ष्ण-तिक्त-कटु प्याले,
ऐसे ही प्यालों का गुण तो तूने जीवन भर गाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
नव वर्ष 
वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल!
फिर वर्ष नूतन आ गया!
फिर वर्ष नूतन आ गया!
सूने तमोमय पंथ पर,
अभ्यस्त मैं अब तक विचर,
नव वर्ष में मैं खोज करने को चलूँ क्यों पथ नया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
निश्चित अँधेरा तो हुआ,
सुख कम नहीं मुझको हुआ,
दुविधा मिटी, यह भी नियति की है नहीं कुछ कम दया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
दो-चार किरणें प्यार कीं,
मिलती रहें संसार की,
जिनके उजाले में लिखूँ मैं जिंदगी का मर्सिया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
नूतन वर्ष
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
गृह-विहीन बन वन-प्रयास का
तप्त आँसुओं, तप्त श्वास का,
एक और युग बीत रहा है, आओ इस पर हर्ष मना लें!
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
उठो, मिटा दें आशाओं को,
दबी छिपी अभिलाषाओं को,
आओ, निर्ममता से उर में यह अंतिम संघर्ष मना लें!
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
हुई बहुत दिन खेल मिचौनी,
बात यही थी निश्चित होनी,
आओ, सदा दुखी रहने का जीवन में आदर्श बना लें!
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
नवीन वर्ष 
तमाम साल जानता कि तुम चले,
निदाघ में जले कि शीत में गले,
मगर तुम्हें उजाड़ खण्ड ही मिले,
मनुष्य के लिए कलंक हारना।
अतीत स्वप्न, मानता, बिखर गया,
अतीत, मानता, निराश कर गया,
अतीत, मानता, निराश कर गया,
तजो नहीं भविष्य को सिंगारना।
नवीन वर्ष में नवीन पथ वरो,
नवीन वर्ष में नवीन प्रण करो,
नवीन वर्ष में नवीन रस भरो,
धरो नवीन देश-विश्व धारणा।
 
आशीर्वाद 
 
(वृद्धों को)
रह स्वस्थ आप सौ शरदों को जीते जाएँ,
आशीष और उत्साह आपसे हम पाएँ।
(प्रौढ़ों को)
यह निर्मल जल की, कमल, किरन की रुत है।
जो भोग सके, इसमें आनन्द बहुत है।
(युवकों को)
यह शीत, प्रीति का वक्त, मुबारक तुमको,
हो गर्म नसों में रक्त मुबारक तुमको।
(नवयुवकों को)
तुमने जीवन के जो सुख स्वप्न बनाए,
इस वरद शरद में वे सब सच हो जाएँ।
(बालकों को)
यह स्वस्थ शरद ऋतु है, आनंद मनाओ।
है उम्र तुम्हारी, खेलो, कूदो, खाओ।