दो चार बार हम जो कभी – कुँअर बेचैन

हिंदी ग़ज़ल और गीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुंवर बेचैन की एक बेहद खूबसूरत कविता पढ़िए – दो चार बार हम जो कभी

Kunwar Bechain

दो चार बार हम जो कभी – कुँअर बेचैन

दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए

रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए

चाहा था एक फूल ने तड़पे उसी के पास
हमने खुशी के पाँवों में काँटे चुभा लिए

सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुख, बिजलियों की आग में बादल नहा लिए

जब हो सकी न बात तो हमने यही किया
अपनी गजल के शेर कहीं गुनगुना लिए

अब भी किसी दराज में मिल जाएँगे तुम्हें
वो खत जो तुम्हें दे न सके लिख लिखा लिए।