बेताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हमको – शहरयार

शहरयार एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे. प्रस्तुत है उनकी एक ग़ज़ल “बेताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हमको”

Shaharyaar

बेताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हमको

बेताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हमको
आवारा हैं और दश्त का सौदा नहीं हमको

ग़ैरों की मोहब्बत पे यक़ीं आने लगा है
यारों से अगरचे कोई शिकवा नहीं हमको

नैरंगिए-दिल है कि तग़ाफुल का करिश्मा
क्या बात है जो मेरी तमन्ना नहीं हमको

या तेरे अलावा भी किसी शै की तलब है
या अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हमको

या तुम भी मदावाए-अलम कर नहीं सकते
या चारागरो फ़िक्रे-मुदावा नहीं हमको

यूँ बरहमिए-काकुले-इमरोज से खुश हैं
जैसे कि ख़्याले-रुख़े-फ़र्दा नहीं हमको