आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है – मिर्ज़ा ग़ालिब

Presenting the ghazal “Aa ki Meri Jaan Ko Qarar Nahi”, written by the Urdu Poet Mirza Ghalib.

Mirza Ghalib Shayari - Urdu Shayari Ghazal and Sher of Ghalib

आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है

आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इंतिज़ार नहीं है

देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले
नश्शा ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं है

गिर्या निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को
हाए कि रोने पे इख़्तियार नहीं है

हम से अबस है गुमान-ए-रंजिश-ए-ख़ातिर
ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुबार नहीं है

दिल से उठा लुत्फ़-ए-जल्वा-हा-ए-मआनी
ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है

क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे
वाए अगर अहद उस्तुवार नहीं है

तू ने क़सम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’
तेरी क़सम का कुछ ए’तिबार नहीं है