माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं. उनकी एक कविता प्रस्तुत है “यौवन का पागलपन”.
हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।
सपना है, जादू है, छल है ऐसा
पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
मिट-मिटकर दुनियाँ देखे रोज़ तमाशा।
यह गुदगुदी, यही बीमारी,
मन हुलसावे, छीजे काया।
हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।
वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,
वह आया सपने में, मन में, उठकर,
वह आया साँसों में से रुक-रुककर।
हो न पुरानी, नई उठे फिर
कैसी कठिन मोहनी माया!
हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।