सुमित्रानंदन पंत हिंदी में छायावाद युग के प्रमुख स्तंभों में से एक हैं. सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति चित्रण श्रेष्ठ है. प्रस्तुत है यहाँ उनकी एक कविता “वायु के प्रति “.
प्राण! तुम लघु लघु गात!
नील नभ के निकुंज में लीन,
नित्य नीरव, नि:संग नवीन,
निखिल छवि की छवि! तुम छवि हीन
अप्सरी-सी अज्ञात!
अधर मर्मरयुत, पुलकित अंग
चूमती चलपद चपल तरंग,
चटकतीं कलियाँ पा भ्रू-भंग
थिरकते तृण; तरु-पात!
हरित-द्युति चंचल अंचल छोर
सजल छवि, नील कंचु, तन गौर,
चूर्ण कच, साँस सुगंध झकोर,
परों में सांय-प्रात!
विश्व हृत शतदल निभृत निवास,
अहिर्निशि जग-जीवन-हास-विलास,
अदृश्य, अस्पृश्य अजात!