त्रिलोचन चलता रहा – त्रिलोचन

त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य प्रगतिशील काव्यधारा का एक स्तम्भ माना जाता है. पढ़िए उनकी लिखी एक कविता – त्रिलोचन चलता रहा

Trilochan

मंडी हाउस पर नोएडा जाने वाली चार्टर्ड बस में त्रिलोचन

त्रिलोचन को देखा
पकी दाढ़ी
गहरी आंखें
चेहरे पर ताप
हाथ में झोला
चुपचाप खड़े थे बस के दरवाजे पर

ऐ ताऊ
पैसे दे

ऐ ताऊ
पीछे बढ़ जा, सीट है बैठ जा

जैसे प्रगतिशील कवियों की ऩई लिस्ट निकली थी
और उसमें त्रिलोचन का नाम नहीं था
उसी तरह इस कंडक्टर की बस में
उनकी सीट नहीं थी

सफर कटता रहा
त्रिलोचन चलता रहा
संघर्ष के तमाम निशान
अपनी बांहों में समेटे
बिना बैठे
त्रिलोचन चलता रहा