अनुभूति – सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत हिंदी में छायावाद युग के प्रमुख स्तंभों में से एक हैं. सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति चित्रण श्रेष्ठ है. प्रस्तुत है यहाँ उनकी एक कविता – अनुभूति

Sumitranandan Pant

तुम आती हो,
नव अंगों का
शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो।

बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम,
सांसों में थमता स्पंदन-क्रम,
तुम आती हो,
अंतस्थल में
शोभा ज्वाला लिपटाती हो।

अपलक रह जाते मनोनयन
कह पाते मर्म-कथा न वचन,
तुम आती हो,
तंद्रिल मन में
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो।

अभिमान अश्रु बनता झर-झर,
अवसाद मुखर रस का निर्झर,
तुम आती हो,
आनंद-शिखर
प्राणों में ज्वार उठाती हो।

स्वर्णिम प्रकाश में गलता तम,
स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम
तुम आती हो,
जीवन-पथ पर
सौंदर्य-रहस बरसाती हो।

जगता छाया-वन में मर्मर,
कंप उठती रुध्द स्पृहा थर-थर,
तुम आती हो,
उर तंत्री में
स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो।