नागार्जुन हिन्दी, संस्कृत और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे. उनकी लिखी एक हिंदी कविता पढ़ें, शीर्षक है – मैंने देखा
मैंने देखा :
दो शिखरों के अन्तराल वाले जँगल में
आग लगी है …
बस अब ऊपर की मोड़ों से
आगे बढ़ने लगी सड़क पर
मैंने देखा :
धुआँ उठ रहा
घाटी वाले
खण्डित-मण्डित अन्तरिक्ष में
मैंने देखा : आग लगी है
दो शिखरों के अन्तराल वाले जँगल में ।
मैंने देखा : शिखरों पर
दस-दस त्रिकूट हैं
यहाँ-वहाँ पर चित्र-कूट हैं
दाएँ-बाएँ तलहटियों तक
फैले इनके जटा-जूट हैं
सूखे झरनों के निशान हैं
तीन पथों में बहने वाली
गँगा के महिमा-बखान हैं
दस झोपड़ियाँ, दो मकान हैं
इनकी आभा दमक रही है
इनका चूना चमक रहा है
इनके मालिक वे किसान हैं
जिनके लड़के मैदानों में
युग की डाँट-डपट सहते हैं
दफ़्तर में भी चुप रहते हैं ।