केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं. आज उनकी एक बेहद खूबसूरत हिंदी कविता “जो न होना था, हुआ” पढ़िए.
जो न होना था, हुआ;
हुआ जो यह हुआ-
अनजाना हुआ।
अब जो आए,
नए आए,
अलौकिक का
नया संस्करण लाए,
मंत्र मारते,
झूमते-झामते-
इतराए।
लौकिक ऊँट की नाक
अलौकिक की नकेल से
नाथने आए;
ऊँट को चोटी पर चढ़ाने आए,
न पाई उँचाई को पाने आए,
न लौकिक ऊँट को नाथ पाए-
न चोटी पर चढ़ा पाए-
न चढ़ पाए-
न निदान समझ पाए-
विह्वल बिलबिलाए।