यह लघु सरिता का बहता जल – गोपाल सिंह नेपाली

गोपाल सिंह नेपाली हिन्दी एवं नेपाली के प्रसिद्ध कवि थे. प्रस्तुत है उनकी एक बेहद खूबसूरत हिंदी की कविता जिसका शीर्षक है – यह लघु सरिता का बहता जल

Gopal Singh Nepali

यह लघु सरिता का बहता जल

यह लघु सरिता का बहता जल

कितना शीतल, कितना निर्मल
हिमगिरि के हिम से निकल निकल,
यह निर्मल दूध सा हिम का जल,
कर-कर निनाद कल-कल छल-छल,

तन का चंचल मन का विह्वल
यह लघु सरिता का बहता जल

ऊँचे शिखरों से उतर-उतर,
गिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर,
कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर,
दिन भर, रजनी भर, जीवन भर,

धोता वसुधा का अन्तस्तल
यह लघु सरिता का बहता जल

हिम के पत्थर वो पिघल पिघल,
बन गए धरा का वारि विमल,
सुख पाता जिससे पथिक विकलच
पी-पी कर अंजलि भर मृदुजल,

नित जलकर भी कितना शीतल
यह लघु सरिता का बहता जल

कितना कोमल, कितना वत्सल,
रे जननी का वह अन्तस्तल,
जिसका यह शीतल करुणा जल,
बहता रहता युग-युग अविरल,

गंगा, यमुना, सरयू निर्मल
यह लघु सरिता का बहता जल