सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी भाषा के कवि, लेखक, पत्रकार थे. वे नयी कविता आंदोलन और प्रयोगवाद के लिए जाने जाते थे. प्रस्तुत है उनकी एक कविता “वसीयत ”
वसीयत – अज्ञेय
मेरी छाती पर
हवाएं लिख जाती हैं
महीन रेखाओं में
अपनी वसीयत
और फिर हवाओं के झोंकों ही
वसीयतनामा उड़ाकर
कहीं और ले जाते हैं।
बहकी हवाओ !
वसीयत करने से पहले
हल्फ उठाना पड़ता है
कि वसीयत करने वाले के
होश-हवाश दुरूस्त हैं:
और तुम्हें इसके लिए
गवाह कौन मिलेगा
मेरे ही सिवा ?
क्या मेरी गवाही
तुम्हारी वसीयत से ज्यादा
टिकाऊ होगी ?