महफ़िल में आज पढ़िए हिंदी के कवि एवं साहित्यकार सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की एक कविता जिसका शीर्षक है – विवशता
कितना चौड़ा पाट नदी का
कितनी भारी शाम
कितने खोये खोये से हम
कितना तट निष्काम
कितनी बहकी बहकी-सी
दूरागत वंशी टेर
कितनी टूटी-टूटी-सी
नभ पर विहंगो की फेर
कितनी सहमी सहमी-सी
क्षिति की सुरमई पिपासा
कितनी सिमटी सिमटी-सी
जल पर तट तरु अभिलाषा
कितनी चुप-चुप गई रोशनी
छिप-छिप आई रात
कितनी सिहर सिहर कर
अधरों से फूटी दो बात
चार नयन मुस्काये
खोये भीगे फिर पथराये
कितनी बड़ी विवशता
जीवन की कितनी कह पाए।