पंछियों को फिर कहाँ पर ठौर है – कुँअर बेचैन

हिंदी ग़ज़ल और गीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुंवर बेचैन की एक बेहद खूबसूरत कविता पढ़िए – “पंछियों को फिर कहाँ पर ठौर है”.

Kunwar Bechain

नीड़ के तिनके
अगर चुभने लगें
पंछियों को फिर कहाँ पर ठौर है।

जो न होतीं पेट की मज़बूरियाँ
कौन सहता सहजनों से दूरियाँ
छोड़ते क्यों नैन के पागल हिरन
रेत पर जलती हुई कस्तूरियाँ

नैन में पलकें
अगर चुभने लगें
पुतलियों को फिर कहाँ पर ठौर है।

पंख घायल थे मगर उड़ना पड़ा
दूर के आकाश से जुड़ना पड़ा
एक मीठी बूँद पीने के लिए
जिस तरफ़ जाना न था मुड़ना पड़ा

फूल भी यदि
शूल-से चुभने लगें
तितलियों को फिर कहाँ पर ठौर है।