मिट्टी का गहरा अंधकार – सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत हिंदी में छायावाद युग के प्रमुख स्तंभों में से एक हैं. सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति चित्रण श्रेष्ठ है. प्रस्तुत है यहाँ उनकी एक कविता – मिट्टी का गहरा अंधकार

Sumitranandan Pant

सृष्टि
मिट्टी का गहरा अंधकार
डूबा है उसमें एक बीज,–
वह खो न गया, मिट्टी न बना,
कोदों, सरसों से क्षुद्र चीज!
उस छोटे उर में छिपे हुए
हैं डाल-पात औ’ स्कन्ध-मूल,
गहरी हरीतिमा की संसृति,
बहु रूप-रंग, फल और फूल!
वह है मुट्ठी में बंद किए
वट के पादप का महाकार,
संसार एक! आश्चर्य एक!
वह एक बूँद, सागर अपार!
बन्दी उसमें जीवन-अंकुर
जो तोड़ निखिल जग के बन्धन,–
पाने को है निज सत्व,–मुक्ति!
जड़ निद्रा से जग कर चेतन!
आः, भेद न सका सृजन-रहस्य
कोई भी! वह जो क्षुद्र पोत,
उसमें अनन्त का है निवास,
वह जग-जीवन से ओत-प्रोत!
मिट्टी का गहरा अन्धकार,
सोया है उसमें एक बीज,–
उसका प्रकाश उसके भीतर,
वह अमर पुत्र, वह तुच्छ चीज?