मन रीझ न यों – कुँअर बेचैन

हिंदी ग़ज़ल और गीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुंवर बेचैन की एक बेहद खूबसूरत कविता पढ़िए – मन रीझ न यों

Kunwar Bechain

मन रीझ न यों – कुँअर बेचैन

मन!
अपनी कुहनी नहीं टिका
उन संबंधों के शूलों पर
जिनकी गलबहियों से तेरे
मानवपन का दम घुटता हो।

मन!
जो आए और छील जाए
कोमल मूरत मृदु भावों की
तेरी गठरी को दे बैठे
बस एक दिशा बिखरावों की

मन!
बाँध न अपनी हर नौका
ऐसी तरंग के कूलों पर
बस सिर्फ़ ढहाने की ख़ातिर
जिसका पग तट तक उठता हो।

जो तेरी सही नज़र पर भी
टूटा चश्मा पहना जाए
तेरे गीतों की धारा को
मरुथल का रेत बना जाए

मन!
रीझ न यों निर्गंध-बुझे
उस सन्नाटे के फूलों पर
जिनकी छुअनों से दृष्टि जले,
भावुक मीठापन लुटता हो।