हिंदी ग़ज़ल और गीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुंवर बेचैन की एक बेहद खूबसूरत कविता पढ़िए – करो हमको न शर्मिंदा
करो हमको न शर्मिंदा – कुँअर बेचैन
करो हमको न शर्मिंदा बढ़ो आगे कहीं बाबा
हमारे पास आँसू के सिवा कुछ भी नहीं बाबा
कटोरा ही नहीं है हाथ में बस इतना अंतर है
मगर बैठे जहाँ हो तुम खड़े हम भी वहीं बाबा
तुम्हारी ही तरह हम भी रहे हैं आज तक प्यासे
न जाने दूध की नदियाँ किधर होकर बहीं बाबा
सफाई थी सचाई थी पसीने की कमाई थी
हमारे पास ऐसी ही कई कमियाँ रहीं बाबा
हमारी आबरू का प्रश्न है सबसे न कह देना
वो बातें हमने जो तुमसे अभी खुलकर कहीं बाबा