जीवन, यह मौलिक महमानी – माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं. उनकी एक कविता प्रस्तुत है – जीवन, यह मौलिक महमानी

जीवन, यह मौलिक महमानी!

खट्टा, मीठा, कटुक, केसला
कितने रस, कैसी गुण-खानी
हर अनुभूति अतृप्ति-दान में
बन जाती है आँधी-पानी

कितना दे देते हो दानी
जीवन की बैठक में, कितने
भरे इरादे दायें-बायें
तानें रुकती नहीं भले ही
मिन्नत करें कि सौहे खायें!

रागों पर चढ़ता है पानी।।
जीवन, यह मौलिक महमानी।।

ऊब उठें श्रम करते-करते
ऐसे प्रज्ञाहीन मिलेंगे
साँसों के लेते ऊबेंगे
ऐसे साहस-क्षीण मिलेगे

कैसी है यह पतित कहानी?
जीवन, यह मौलिक महमानी।।

ऐसे भी हैं, श्रम के राही
जिन पर जग-छवि मँडराती है
ऊबें यहाँ मिटा करती हैं
बलियाँ हैं, आती-जाती हैं।

अगम अछूती श्रम की रानी!
जीवन, यह मौलिक महमानी।।