माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं. उनकी एक कविता प्रस्तुत है “जाड़े की साँझ”.
किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चपु
अपने घर को चल पड़ी सहस्त्रों हँस-हँस
उ ण्ड खेलतीं घुल-मिल होड़ा-होड़ी
रोके रंगों वाली छबियाँ? किसका बस!
ये नटखट फिर से सुबह-सुबह आवेंगी
पंखनियाँ स्वागत-गीत कि जब गावेंगी।
दूबों के आँसू टपक उठेंगे ऐसे
हों हर्ष वायु से बेक़ाबू- से जैसे।
कलियाँ हँस देंगी
फूलों के स्वर होगा
आगन्तुक-दल की आँखों का घर होगा,
ऊँचे उठना कलिकाओं का वर होगा
नीचे गिरना फूलों का ईश्वर होगा।
शाला चमकेगी फिर ब्रह्माण्ड-भवन की
खेलेंगी आँख-मिचौनी नटखट मन की।
इनके रूपों में नया रंग-सा होगा
सोई दुनिया का स्वपन दंग-सा होगा
यह सन्ध्या है, पक्षी चुप्पी साधेंगे
किरणों की शाला बन्द हो गई- चुप-चुप।