सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी भाषा के कवि, लेखक, पत्रकार थे. वे नयी कविता आंदोलन और प्रयोगवाद के लिए जाने जाते थे. प्रस्तुत है उनकी एक कविता “घाट-घाट का पानी”
घाट-घाट का पानी
होने और न होने की सीमा-रेखा पर सदा बने रहने का
असिधारा-व्रत जिस ने ठाना-सहज ठन गया जिस से-
वही जिया। पा गया अर्थ।
बार-बार जो जिये-मरे
यह नहीं कि वे सब
बार-बार तरवार-घाट पर
पीते रहे नये अर्थों का पानी।
अर्थ एक है: मिलता है तो एक बार: (गुड़-सा गूँगे को!)
और उसे दोहराना
दोहरे भ्रम में बह जाना है।