दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब – अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी भाषा के कवि, लेखक, पत्रकार थे. वे नयी कविता आंदोलन और प्रयोगवाद के लिए जाने जाते थे. प्रस्तुत है उनकी एक कविता “दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब।”

Agyeya

दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब।

तब ललाट की कुंचित अलकों-
तेरे ढरकीले आँचल को,
तेरे पावन-चरण कमल को,
छू कर धन्य-भाग अपने को लोग मानते हैं सब के सब।

मैं तो केवल तेरे पथ से
उड़ती रज की ढेरी भर के,
चूम-चूम कर संचय कर के
रख भर लेता हूँ मरकत-सा मैं अन्तर के कोषों में तब।

पागल झंझा के प्रहार सा,
सान्ध्य-रश्मियों के विहार-सा,
सब कुछ ही यह चला जाएगा-
इसी धूलि में अन्तिम आश्रय मर कर भी मैं पाऊँगा दब !

दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब।