त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य प्रगतिशील काव्यधारा का एक स्तम्भ माना जाता है. पढ़िए उनकी लिखी एक कविता – दिन ये फूल के हैं
मत जाना चले कहीं भूल के
दिन ये फूल के हैं
किए मन के सिंगार
सामने कचनार
आम के बौर कहते हैं
देखो बहार
हाल ऎसे ही कुछ
अब बबूल के हैं
कोई रूठे मनाओ
जाओ जाओ अपनाओ
इस हवा की समझ से
सभी को समझाओ
कितने दिन फूल मंदिर
में धूल के हैं
आ गई वह कली
आज अपनी गली
कल जो आई थी
पहचान पा कर खिली
प्राण धारा के हैं
कहाँ कूल के हैं