दिन से लंबा ख़ालीपन – कुँअर बेचैन

हिंदी ग़ज़ल और गीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुंवर बेचैन की एक बेहद खूबसूरत कविता पढ़िए – दिन से लंबा ख़ालीपन

Kunwar Bechain

दिन से लंबा ख़ालीपन – कुँअर बेचैन

नींदें तो
रातों से लंबी
दिन से लंबा ख़ालीपन
अब क्या होगा मेरे मन?

मन की मीन
नयन की नौका
जब भी चाहे
बीती-अनबीती बातों में
डूबे-उतराए

निष्ठुर तट ने
तोड़ दिए हैं
बर्तुल लहरों के कंगन।
अब क्या होगा मेरे मन?

जितनी साँसें
रहन रखी थीं
भोले जीवन ने
एक-एक कर
छीनीं सारी
अश्रु-महाजन ने

लुटा हाट में
इस दुनिया की,
प्राणों का मधुमय कंचन।
अब क्या होगा मेरे मन।।