धानों का गीत – केदारनाथ सिंह

केदारनाथ सिंह, हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार थे. यहाँ पढ़िए उनकी ही एक बेहद खूबसूरत हिंदी कविता जिसका शीर्षक है – धानों का गीत

Kedarnath Singh

धानों का गीत – केदारनाथ सिंह

धान उगेंगे कि प्रान उगेंगे
उगेंगे हमारे खेत में,
आना जी, बादल ज़रूर !
चन्दा को बाँधेंगे कच्ची कलगियों
सूरज को सूखी रेत में
आना जी, बादल ज़रूर !

आगे पुकारेगी सूनी डगरिया
पीछे झुके बन-बेंत
संझा पुकारेंगी गीली अखड़ियाँ
भोर हुए धन खेत;
आना जी, बादल ज़रूर !
धान कँपेंगे कि प्रान कँपेंगे
कँपेंगे हमारे खेत में,
आना जी, बादल ज़रूर !

धूप ढरे तुलसी-बन झरेंगे,
साँझ घिरे पर कनेर,
पूजा की वेला में ज्वार झरेंगे
धान-दिये की बेर,
आना जी बादल ज़रूर !
धान पकेंगे कि प्रान पकेगे
पकेंगे हमारे खेत में,
आना जी, बादल ज़रूर !

झीलों के पानी खजूर हिलेंगे,
खेतों में पानी बबूल,
पछुवा के हाथों में शाखें हिलेंगे,
पुरवा के हाथों में फूल,
आना जी बादल ज़रूर !
धान तुलेंगे कि प्रान तुलेंगे,
तुलेंगे हमारे खेत में,
आना जी बादल ज़रूर !