सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी भाषा के कवि, लेखक, पत्रकार थे. वे नयी कविता आंदोलन और प्रयोगवाद के लिए जाने जाते थे. प्रस्तुत है उनकी एक कविता “बेल-सी वह मेरे भीतर”
बेल-सी वह मेरे भीतर
बेल-सी वह मेरे भीतर उगी है, बढ़ती है।
उस की कलियाँ हैं मेरी आँखें,
कोंपलें मेरी अँगुलियों में अँकुराती हैं;
फूल-अरे, यह दिल में क्या खिलता है!
साँस उस की पँखुड़ियाँ सहलाती हैं।
बाँहें उसी के वलय में बँध कसमसाती हैं।
बेल-सी वह मेरे भीतर उगी है, बढ़ती है,
जितना मैं चुकता जाता हूँ,
वह मुझे ऐश्वर्य से मढ़ती है!