He was awarded the Sahitya Akademi Award in Urdu for Khwab Ka Dar Band Hai (1987), and in 2008 he won the Jnanpith Award, the highest literary award and only the fourth Urdu poet to win the award.
अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान जिन्हें उनके तख़ल्लुस या उपनाम शहरयार से ही पहचाना जाना जाता है, एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे। वे बेहद जानकार और विद्वान शायर के तौर पर अपनी रचनाओं के जरिए वह स्व-अनुभूतियों और आधुनिक वक्त की समस्याओं को समझने की कोशिश करते नजर आते हैं। शहरयार ने गमन और आहिस्ता-आहिस्ता आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता १९८१ में बनी फ़िल्म उमराव जान से मिली।
(Source: As read on Wikipedia)
Shaharyaar Shayari and Poems
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Some Latest Added Poems of Shaharyaar
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- कटेगा देखिए दिन जाने किस अज़ाब के साथ – शहरयार
- दुश्मन-दोस्त सभी कहते हैं, बदला नहीं हूँ मैं – शहरयार
- इसे गुनाह कहें या कहें सवाब का काम – शहरयार
- यह क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गये होते – शहरयार
- हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के – शहरयार
- बेताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हमको – शहरयार
- ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं – शहरयार / चित्रा सिंह
- महफिल में बहुत लोग थे मै तन्हा गया था – शहरयार
- ज़िन्दगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है – शहरयार
- Jo Chahti Duniya Hai – Shaharyaar