फ़ानी को निराशावाद का पेशवा कहा जाता है। उनकी शायरी दुख व पीड़ा की शायरी है।फ़ानी बदायूनी का नाम शौकत अली ख़ां था, पहले शौकत तख़ल्लुस करते थे, बाद में फ़ानी पसंद किया। फ़ानी ने ग्यारह साल की उम्र में ही शायरी शुरू कर दी थी और 1898 ई. में उनका पहला दीवान संकलित हो गया था.
(Source: As read on Wikipedia)
Fani Badayuni Shayari and Poems
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Some Latest Added Poems of Fani Badayuni
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- क्या छुपाते किसी से हाल अपना – फ़ानी बदायुनी
- वो जी गया जो इश्क़ में जी से गुज़र गया – फ़ानी बदायुनी
- हर साँस के साथ जा रहा हूँ – फ़ानी बदायुनी
- एक मोअ’म्मा है समझने का – फ़ानी बदायूनी
- जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर – फ़ानी बदायूनी
- कारवाँ गुज़रा किया हम रहगुज़र देखा किये – फ़ानी बदायूनी
- मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात – फ़ानी बदायुनी
- किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला – फ़ानी बदायुनी
- ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं – फ़ानी बदायुनी
- दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है – फ़ानी बदायुनी
Some Famous Fani Badayuni Sher Shayari
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है- इस दर्द का इलाज अजल के सिवा भी है
क्यूँ चारासाज़ तुझ को उम्मीद-ए-शिफ़ा भी है या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं ‘फ़ानी’
लेकिन तिरी रहमत की ताख़ीर को क्या कहिएरूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश पर
क्या जनाज़े पर मेरे ख़त का जवाब आने को हैकिस ख़राबी से ज़िंदगी ‘फ़ानी’
इस जहान-ए-ख़राब में गुज़रीदिल का उजड़ना सहल सही बसना सहल नहीं ज़ालिम
बस्ती बसना खेल नहीं बसते बसते बस्ती हैरूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश पर
क्या जनाज़े पर मेरे ख़त का जवाब आने को हैनहीं ज़रूर कि मर जाएँ जाँ-निसार तेरे
यही है मौत कि जीना हराम हो जाएरोने के भी आदाब हुआ करते हैं ‘फ़ानी’
ये उस की गली है तेरा ग़म-ख़ाना नहीं हैयूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दियाइक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का